मल्हार उत्खनन

मल्हार, जिला - बिलासपुर, छत्तीसगढ़

२००९ से २०११ वीथिका में जाएं
  • जुलाई २००९-२०११, डॉक्टर एस. के. मित्रा
  • २१°५३’५४.३४” एन; ८२° १६’३६.९१” ई

एस. के. मित्रा के निर्देशन में उत्खनन शाखा-१, नागपुर मे मल्हार (२१°५३’५४.३४” एन, ८२° १६’३६.९१” ई), जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में उत्खनन कार्य किया। मल्हार (मलालापत्तन) प्राचीन समय में चेती क्षेत्र की सीमा के अंतर्गत एक प्राचीन क्षेत्र या जो कि इस क्षेत्र में दक्षिण कौशल के क्षेत्र में आता था। मल्हार उत्खनन स्थल मे हुई खुदाई से पाँच कालों का जमाव प्रकाश में आया जो मुख्या तथा मृदमाण्ड परंपरा, सतपत्तियीय संरचना तथा अभिलेखीय सिक्कों के आधार पर निर्धारित है।

  • कालक्रम - प्रथम
  • यह कल खण्ड प्राकमौर्य कालीन है जिसमें मृदमाण्डों के टुकड़े मिलते है। सामान्य पात्र प्रकारों में लाल रंग, हल्के लाल रंग के हैं जिनमें सस्टोरेज जार, माध्यम से लेकर बड़े आकार वाले घड़े/बर्तन व लघु आकार वाले कटोरे हैं। लाल रंग प्रलेपित वाले बर्तनो में प्रमुख्यतः कैरीनेटड हॉंडी, घड़े तथा बेसिन हैं। काले-लाल रंग के पात्रों में मध्यम आकार वाले उत्तलीय दीवार वाले कटोरे (सकोरे), कैरीनेटड इंडिया (कोणाकार हॉंडी) व लघु छिछले बेसिन मुख्य है। बहुत छोटे क्षेत्र में किये गए उत्खनन में कोई भी स्थापत्यीय अवशेष नहीं मिले है।
  • कार्यक्रम - द्वितीय
  • मौर्य तथा शुंगकालीन स्तर में बहुत अल्प स्थापत्यीय गतिविधि देखने को मिलती है। इस कालखंड में बहुत कम संख्या में पात्र व पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। इस काल में पिछले काल-खंड की ही पात्र-परंपरा प्राप्त होती है परंतु लाल व काले मृदमाण्ड तथा बड़े लाल रंग के मृदमाण्ड लगभग समाप्त प्राय हैं। प्रमुख पात्र है- लाल रंग के, हल्के लाल रंग के तथा लाल प्रलेपयुक्त पांच प्रकार के जो भी अधिक संख्या में विभिन्न प्रकार के प्रकारों में प्राप्त हुए हैं तथा इनके साथ-साथ काली चमकीली पात्र परंपरा का भी सूत्रपात होता है, जिनमें मुख्यतः कटोरे तथा छिछली थालियां मिलती हैं। प्रमुख पुरावशेषों में प्रस्तर का टूटा हुआ फलक है जो कि बहुत अलंकृत है, चर्ट से निर्मित चमकीला (पॉलिश किया हुआ) व बहुअलंकृत कर्ण-कुंडल उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त अल्प महंगे प्रस्तर से निर्मित मनके, पकी हुई मिट्टी की वस्तुएं, मुद्रांकों के छोटे टुकड़े आदि इस काल के जमाव से प्राप्त होते हैं।
  • कालक्रम - तृतीय
  • इस काल में हमें प्राकगुप्तकालीन मृदमाण्ड मिलते हैं जिनमें लाल रंग के प्रलेपयुक्त, अधिक संख्या में अंगुलियों के निशान वाले पात्र उल्लेखनीय है इसके साथ दोहरे छिद्र वाले चावल का भूषायुक्त पकी हुई टाली प्राप्त होती है। जहां तक बर्तनों के प्रकार का प्रश्न है, उनमें स्टोरेज जार, बड़े, माध्यम व लघु आकार के घड़े, बेसिन, छोटे-बड़े घड़े, लिप्ड रिम एवं लोटे प्रमुख है। अधिक संख्या में प्राप्त सिल-लोढ़े रसोईघर से संबंधित है। एक मात्र रोलेटेड बर्तन (रोलेटेड बेयर ) की प्राप्ति इस साल की एक बड़ी उपलब्धि है। प्राप्त पुरावशेषों में, मानव व पशुओं की मृतमूर्तियां, चक्र, गोलाकार खेलने की चकरी (हाक्सकांच), मनके (मुख्यतः सुपारी की भांति), अल्प महंगे प्रस्तर के मनके, हाथी-दांत के पासे महत्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त लौह पुरावशेषों में कील, चाकू तीर का अग्रभाग (एरोहेड), भाले, छल्ले तथा चम्मचें प्रमुख है। कुछ पकी हुई मिट्टी की बनी मुद्राकों का भी पाया जाना महत्वपूर्ण है। इनमें बने अक्षरों या चिन्हों के आधार पर कुषाण-सातवाहन कालीन प्रतीत होती है। एक महत्वपूर्ण गोलाकार मुद्रांक में ब्राह्मीलिपि में 'म' के चारों ओर घड़ी की उल्टी दिशा में लिखा है "यूवराजस्व विशिष्ट पुत्रस्य गुटालाशिय" मध्य में लिखा है 'म' अक्षर का तादात्मय मल्हार से स्थापित किया जाता है। अन्य शब्द रन-भो शिवमघस (रि) (री) सा लिखा है। और एक अन्य मुद्रांक में बैठी हुआ कूबड़ वाला सांड दिखाया गया है। तथा अभिलेख "रुषम यश" लिखा है। अभिलेखीय अध्ययन के आधार पर दोनों मुद्रकों का तिथि क्रम १०० ईसा पूर्व है। इस काल में वशिष्ठीपुत्र पुलमनी का सातवाहन सिक्का प्राप्त हुआ है, जिसमें के ठीक नीचे द्रकक्षीय सातवाहन कालीन ईटों से निर्मित स्थापत्यीय संरचना मिली है। जिनमें एक खुला हुआ चूने से निर्मित बरामदा भी है। इसके अतिरिक्त इस काल में बहुत से पकाई गई ईंटों से निर्मित संरचना मिली है जिनमें कुछ एक एकल कालीय व कुछ द्विकक्षीय भवन रहे हैं जो एक दीवार द्वारा जुड़े हुए हैं।
  • कालक्रम - चतुर्थ
  • गुप्त तथा वाकाटक काल उस काल में प्राप्त चांदी की मुद्राओं द्वारा पहचाना गया है जिसमें एक मुद्रा में विशिष्ट रूप से गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में लक्षण है जबकि अन्य में अभिलेख है जो विशिष्ट रुप से वाकाटक काल है जिनमें ब्राह्मी लिपि के लेक के लेख में बॉक्स हेडेड शब्द है। इस काल में प्राप्त मिट्टी के बर्तनों में हल्के लाल, लाल प्रलेपित, हल्के धूसर रंग के पात्र मिलते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ पात्रों में ठप्पे द्वारा उकेरी गई आकृति मिलती है, जिसमें चंद्र, स्वास्तिक (उल्टा व सीधा दोनों) तारे, पुष्प व पत्तियाँ रेखीय व त्रि-रत्न आदि प्रकार की महत्वपूर्ण है। इस काल में पकी हुई मिट्टी की ईंटों से निर्मित विभिन्न आकारों वाले कक्षा के साक्ष्य मिलते हैं। इन संरचनाओं के साथ-साथ बड़े आकार के गर्त छिद्र (पोस्टहाल) व नालीदार टालियाँ भी मिलती हैं। लोहे के पुरावशेष प्रायः कालक्रम ३ की ही भाती है परंतु अन्य उपकरणों में कैंची तथा रेज़र मिलता है।
  • कालक्रम - पंचम
  • पाँचवा काल उत्तरगुप्तकालीन है, जो अपनी स्थापत्यीय अवशेषों के आधार पर स्पष्ट पहचाना जा सकता है। स्थापत्यीय संरचनाएं अधिकतर स्थानीय प्रस्तर के साथ टूटे हुए ईंटों के टुकड़ों से निर्मित है। उत्खनन में इस साल का कोई भी एक पूर्ण रूप से बना मकान का विन्यास नहीं मिला है। इस कालखण्ड के मुख्य पात्रों में लाल, हल्के लाल रंग के हैं जिनमें कुछ पात्रों में ठप्पे लगी डिजाइन भी है। इनके अतिरिक्त कुछ पात्र अलंकृत किए गए हैं। पुरावशेषों मैं मुख्यतः लोहे की कील, बाणागृ, कुल्हाड़ी, अल्प महंगे प्रस्तर के मनके, पकी मिट्टी के मनके आदी हैं।