भिराना उत्खनन

भिराना, जिला - फतेहाबाद, हरियाणा

२००३ से २००८ वीथिका में जाएं
  • जनवरी २००३-२००८, स्वर्गीय श्री एल. एस. राव
  • २००३-२००८

भिराना या भिहराना या मिराना एक छोटा सा गांव है जो हरियाणा प्रदेश के फतेहाबाद जिले में स्थित है। भिहराना सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वप्राचीन स्थल है जिसकी तिथी ७५७०-६२०० ईसा पूर्व मानी गई है। भिहराना का टीला उत्तर से दक्षिण १९० मीटर तथा पूर्व से पश्चिम २४० मीटर लंबा है जबकि भूमि तल से यह ५.५० मीटर ऊंचा है।

  • स्थिति
  • यह स्थल दिल्ली फाजिल्का राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिल्ली से लगभग २२० किलोमीटर उत्तर पश्चिम की ओर तथा फतेहबाद जिले के जिला मुख्यालय से गुना रोड पर लगभग 14 किलोमीटर उत्तर पूर्व की ओर स्थित है। इस क्षेत्र में प्राचीन सरस्वती नदी की एक धारा विद्यमान है जो वर्तमान में मौसमी घग्गर नदी के नाम से जानी जाती है। यह नदी वर्तमान हरियाणा में नहान से सिरसा की ओर प्रवाहमान है।
  • उत्खनन
  • उत्खनन शाखा-१ नागपुर ने इस स्थल का तीन क्षेत्रीय मौसमों (२००३-०४, २००४-०५, तथा २००५-०६) मैं उत्खनन कार्य किया।
  • संस्कृतियां
  • उत्खनन में तीन सांस्कृतिक कालों का जमाव देखने को मिलता है। कालक्रम-१ अ-हाकरा मृदमाणड संस्कृति, कालक्रम-१ - आरंभिक हड़प्पीय सभ्यता, कालक्रम २ अ आरम्भिक विकसित हड़प्पीय सभ्यता तथा कार्यक्रम - २ ब विकसित हड़प्पीय सभ्यता।
  • कालक्रम -१ (अ): हाकरा मृदमाण्ड संस्कृति
  • उत्खनन में हड़प्पीय संस्कृति के प्रारंभिक अवशेष प्राप्त हुए हैं। यथा हाकरा मृदमाण्ड संस्कृति जो कि महाद्वीप में आरंभिक हड़प्पीय संस्कृति के ईसा पूर्व में दृष्टिगोचर होती है। इसे कालीबंगा-१ के नाम से भी जाना जाता है जिसकी परिणीति एक पूर्ण विकसित हड़प्पीय नगर में दिखाई देती है। भिहराना उत्खनन से पूर्व भारत में कहीं भी किसी भी स्थल से आरंभिक हड़प्पा संस्कृति से पूर्व हकरा मृदमाण्ड संस्कृति के अवशेष मिले हैं। प्रथम बार इस संस्कृति के अवशेष भिहराना के उत्खनन से प्राप्त हुए हैं। इस संस्कृति की मुख्य विशेषता भूमिगत आवासीय कर दो गर्तों के रूप में स्थापत्यीय संरचनाओं का मिलना है। इन गर्तों की दीवारों वह फर्शों पर सरस्वती नदी की पीली रंग की मिट्टी से पलस्तर लगाया गया है। इस काल में पुरावशेषों में एक ताम्बे की चूड़ी, एक वाणाग्र, पक्की मिट्टी की चूड़ियां, कार्नोलियन के मनके, लापीस लाजुली (लाजवर्दमांढी) व स्टेटाइट के मनके, बोन पॉइंट एवं प्रस्तर के सिल लोढ़े हैं। इस काल की पात्र-परंपरा काफी समृद्ध है जिसमें मिट्टी की एप्लीक तकनीक से निर्मित पात्र, इनसाइस (खरोच दार) गहरी व हल्की डिजायन वाला पात्र, टेन/चॉकलेटी प्रलेप युक्त पात्र, रंग बस बफ रंग पर भूरे रंग वाले पात्र, द्विरंगी पात्र (बायोक्रोम) जिसमें बाह सतह पर जिसमें बाहरी सतह पर काले सफेद रंग से कलाकृति निर्मित है, लाल रंग पर काले रंग के व साधारण लाल रंग के पात्र है।
  • कालक्रम-१ (ब) आरंभिक हड़प्पा संस्कृति
  • इस काल में संपूर्ण स्थल में यह सभ्यता विकसित हुई थी, इस समय सभ्यता का विकास एक खुले आकाश के नीचे हुआ था तथा कोई भी चारदीवारी नहीं बनाई गई थी। मकान हल्की पीली बफ मिट्टी की ईंटों के बने थे। ईंटों का नाप तीन : दो : एक का था। इस काल के पात्रों में कालीबंगा-१ के सभी द फेब्रिक मिलते हैं। इसके साथ हकरा पात्र-परंपरा के भी कई मृदमाण्ड यहां मिलते हैं। प्राप्त पुरावशेषों में क्वार्टर फाइल आकार की शंख की बनी हुई मुद्रा, कॉमा तांबे के बने वाणाग्र, चूड़ी चूड़ियाँ व छल्ले, कार्नोलियन, जेसपर, स्टेटाइट, शंख एवं मिट्टी के बने मनके, लॉकेट तथा पकी मिट्टी के बने वृषम मूर्ति, गेम्समैन, बाल चक्र, अस्थि उपकरण आदि महत्वपूर्ण है।
  • कार्यक्रम-२ (अ) आरंभिक विकसित हड़प्पा संस्कृति
  • इस कार्यक्रम में नगर के भू विन्यास में परिवर्तन आया था। संपूर्ण नगर के चारों ओर चारदीवारी का निर्माण किया गया। सिटाडल व लोअर टाउन नगर-विन्यास के दो अंग बन चुके थे। मिट्टी के बने घर व का अन्य संरचनाएं एक सीध में बने बनने लगे थे। सभी सड़क, गलियां, लघु गलियां एक निश्चित सीध में बनने लगी थी। इस काल में विकसित व आरंभिक हड़प्पीय सभ्यता की मिश्रित पात्र-परंपरा दिखाई देती है। इस काल में मुख्य पुरावशेषों में अल्प महंगे प्रस्तर निर्मित मनके (जिसमें मनके दो भंडार दो लघु पात्रों में भी रखे हैं) ताबे, शंख पक्की मिट्टी एवं फियांस की चूड़ियां, मछली पकड़ने का कांटा, खुरचिनी, तांबे के वाणाग्र, पशुओं की मृत्युमूर्तियां आदि है।
  • कालक्रम -२ (ब) विकसित हड़प्पीय संस्कृति
  • स्थल के अंतिम कालक्रम के जवाब में एक पूर्व विकसित हड़प्पीय नगर व्यवस्था के सभी साक्ष्य मिलते हैं। इस साल के मुख्य पुरावशेषों में स्टेटाइट की मुद्राएं, ताँबे, शंख, पक्की मिट्टी व फियांश से निर्मित चूड़ियाँ, ताँबे की एक अभिलेखित कुल्हाड़ी, अस्थि उपकरण, पक्की मिट्टी के चक्र, पशु आकृतियाँ, अल्प महंगे प्रस्तर के मनके आदी हैं। उत्खनन से एक पात्र के कोकरे पर विश्व प्रसिद्ध नृत्यरत लड़की की छवि कुकेरी हुई आकृति मिलती है। विशाल चार दीवारी का निर्माण मिट्टी की ईंटों से हुआ था। भवन धूप में पकाई हुई मिट्टी की ईंटों से बने थे। एक चौड़ा सीधा मार्ग घरों को एक-दूसरे से पृथक करता हुआ देखा जा सकता है। एक गोलाकार तंदूर (पक्की मिट्टी का) के सक्ष्म इस काल में मिलते हैं जिसके तात्कालीन सामूहिक भोज परंपरा का साक्ष्य मिलता है। यह परंपरा अभी भी भारत में दिखाई देती है। चारदीवारी के उत्तरी भाग में मुख्य नाली में प्रयुक्त पकी हुई ईंटों की व्यवस्था से यह पता चलता है कि घरों का गंदा पानी यहां से निकास किया जाता था। भिरहाना की खुदाई से प्राप्त मिट्टी के बर्तन में उकेरी 'नृत्यरत लड़की' की आकृति एक जलपरी प्रकार की देवी की प्रतीत होती है। इस मुद्रा मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांसे भी 'नृत्यरत लड़की' से मिलती-जुलती है, इसे देखकर पुरातत्विद एल. एस. राव का कथन है कि भिरहाना के कलाकार के पास मौलिक ज्ञान था इसको बनाने का। इस तरह की देवियाँ और नृत्यरत लड़कियाँ अप्सरा या जलपरी प्रतीत होती है जो कि एक जल धार्मिक अनुष्ठान से संबद्ध थी जिसका पूरे सिंधु सभ्यता में प्रसार-प्रचार था। इसके अतिरिक्त पक्की मिट्टी से निर्मित चक्र महत्वपूर्ण है जिसमें तिल्लियों को चित्रित किया गया है। इस काल के लोग दिद्ले मिट्टी के पलस्तर युक्त आवासीय गर्तों में भी निवास करते थे। यह आवासीय गर्त औद्योगिक गतिविधि या कुर्बानी के लिए भी प्रयुक्त किए जाते थे। बहुत से कमरे वाले मकान मिलते हैं। एक मकान १० कमरों का, एक मकान तीन कमरों वाला, एक अन्य घर में रसोईघर, बरामदा, चूल्हा आदि मिलता है।